579 दिन पहले 10-May-2024 3:53 PM
मेकिंगचार्ज
मेकिंगचार्ज
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’’टमाटर किस भाव? ’’बड़े-बड़े,लाल-लाल टमाटर एक तरफ करते हुए
बुजुर्गवार ने प्रश्न किया।
’’सात रूपए किलो,बाबू जी! ’’सब्ज़ी वाली तराजू सँभालते हुए बोली।
’’सात रूपए किलो,’’सज्जन ने चौंककर प्रति प्रश्न किया।
’’जी बाबू जी,’’ सब्ज़ी वाली थोड़ी सहमी-सी बोली।
’’अरे भाई,हद करते हो तुम लोग,मण्डी में दस रूपए में ढाई किलो मारे-मारे फिर रहे हैं।’’ऐसा कहते हुए भी सज्जन के हाथ टमाटर छाँटने में लगे थे।
’’अरे बाबूजी, मण्डी का भाव रहि ऊ...फेर टिमाटरऊ तौ...देख लेऔ,...केता बढ़िया रहि’’।
’’अरे, तुम लोग भी ना...बताइए बहन जी!
‘‘आप ही बताइए,...अभी तो ज़रा सब्ज़ी सस्ती हुई है, इस सरकार के राज में और ये लोग फिर भी लूट मचाते हैं’’ मैं सब्ज़ी तुलवा चुकी थी। पैसे देते हुए मैंने उनकी तरफ नजर डाली। अच्छे संभ्रांत,पढ़े-लिखे लगे। मुझे, कपड़ों से भी ठीक-ठाक पैसे वाले ही लगे। मैं हल्की-सी मुस्कराकर आगे बढ़ गई।
’’ऐसे ही लोगों की वजह से इन छोटे लोगों का दिमाग खराब हुआ है, चार पैसे आ जाते हैं तो दिमाग ठिकाने नही रहता। बिना मोल-भाव के खरीददारी करेंगे और समझेंगे बड़े‘कूल’ हैं हम’’। मेरे कानों में पीछे से बुजुर्ग की धीमी और तीखी आवाज पड़ी। मेरे कदम रूक गए...जो बात टल गई थी लगा...उसमें उलझना ही पड़ेगा।
मुझे वापस आया देख थोड़ा सकुचाकर नजरें चुरा गए और सब्ज़ियाँ टटोलने लगे। सब्ज़ी वाली भी थोड़ी घबरा गई, पता नहीं उसे किस बात से डर था। दो रूपए ज्यादा ले रहीं थी, इस बात से या मुझ जैसे ग्राहक पर अपनी पोलपट्टी खुलते देख घबरा रही थी। ज्यादातर सब्ज़ी उसी से लेती हूँ, उसका कोई ठेला नही है। बस एक निश्चित जगह सड़क के किनारे प्लास्टिक बिछा,बड़ी सजा-सँवारकर सब्ज़ियाँ रखती है। सब्ज़ी एकदम ताज़ा और बढ़िया होती है। हाँ, कीमती थोड़ी ज्यादा होती है।
उसकी सब्ज़ियों के पास पहुँचते ही रंग-बिरंगे फूलों के बगीचे में पहुँचने का अहसास होता है। लगता है जैसे एकसाथ सारे फूल खिलखिला उठे हों, या हरी-भरी वादियों में पहुँच गए हों और कोई रंगों से भरा दुशाला ओढ़ बाँहे फैलाए आपको बुला रहा हो।
लाल-लाल ताज़ा टमाटर,अपनी चमकती चिकनी त्वचा से किसी बच्चे के गालों की स्निग्धता को मात करते दिखते। झक,सफेद, ताजा मूलियाँ... अपने सर पर हरी पत्तियों का ताज सजाए इठलाती नजर आतीं। पालक,मेथी,बथुआ,धनिया आदि पत्तेदार सब्ज़ियों को वह इतने करीने से रखती कि लगता...किसी बँगले का करीने से कटा-छँटा मखमली लाँन। मटर... इतनी ताज़ा... और हरी होती कि... उठाकर खाने का मन करने लगे। बैंगन,लौकी,टिंडे इत्यादि अपनी त्वचा से...किसी नवयौवना को चुनौती देते लगते। लब्बोलुबाब यह कि वहाँ पहुँच कर आप सब्ज़ी खरीदने का लोभ संवरण नही कर पाएँगे। खरीदने दो सब्ज़ी गए हैं...लेकर चार ले आएँगे...।
मेरे टहलने के रास्ते में ही, सब्ज़ी वाली से पहले एक और भी सब्ज़ीवाला ठेला लगाता है।
मगर उसकी सब्ज़ियाँ बड़ी बीमार-बीमार सी होती हैं...असमय बुढ़ाए बैंगन, ढेरों झुर्रियों के साथ...इस आस में कि...तेल-बनाए आलू-बैंगन और नाम बहू का होय...। दबे-कुचले से
टमाटर...कुपोषण के शिकार बच्चों की तरह...उनके बीच से झाँकता कोई-कोई लाल टमाटर...
जैसे देहाती,गरीब,कमजोर बच्चों के बीच...कोई स्वस्थ, शहरी बच्चा गलती से पहुँच गया हो।
सूखी,... अपना हरापन खो चुकी...काली-काली काई जैसी क्रीम लगाए भिंडी...
मुरझाई मेथी, पालक... आधी हरी आधी पीली पत्तियों वाला धनिया प्रौढ़ हो चुका होता।... बाकी सब्ज़ियों का भी कुछ ऐसा ही हाल होता उसके ठेले पर... एक अजीब सी मुर्दनी छाई होती। जवानी खो चुकी सब्ज़ियाँ तेल-मसालों के साथ पतीलों में जाने को तैयार बैठी थीं पर ग्राहक उनकी बुढ़ाती देह देख बिदक आगे बढ जाते।
ठेले वाला पानी छिड़क-छिड़क कर उनकी जवानी कायम रखने की कोशिश करता। उससे सब्ज़ी मैं कभी-कभार ही लेती थी...जब मुझे थोड़ी जल्दी होती और सब्ज़ी वाली थोड़ी दूर लगती या... कभी-कभी थोड़ी इंसानियत।... बाकी लोग भी कम ही लेते थे उससे,इसी से बेचारे की सब्ज़ी और बुढ़ाती जाती। लेकिन इधर कुछ दिनों से उसके यहाँ से भी नियमित एक-दो सब्ज़ी ले ही लेती हूँ। बंदा बड़ा व्यावहारिक निकला...मेंरी कमजोर नस पकड़ चुका था...मोल-भाव करती नहीं हूँ, पता नहीं कैसे एक दिन कीमत पूछ ली, बस वह शुरू हो गया बड़े मीठे लहजे में-’’अरे मैडम,आप रोज के ग्राहक हो, आपसे ज्यादा लेंगे’’’...
‘‘नहीं-नहीं, फिर भी...ऐसे ही पूछा’’
‘‘अरे हम जानते नहीं हैं क्या आपको,...आप तो मोल-भाव भी नहीं करती। रोज सब्ज़ी भी लेती हैं और कोई चखचख नहीं...वरना मैडम लोग सब्ज़ी जरा सी लेंगे और कानून दुनिया का बताएँगे’’।
अब उसके ठेले के सामने मेंरे कदम थम ही जाते हैं। उसने एम.बी.ए.की डिग्री तो नहीं ली पर उसकी व्यापारिक बुद्धि की कायल हो गई हूँ।....क्या इंसान को अपनी प्रसंशा इतनी अच्छी लगती है... खै़र।
सब्ज़ी वाली के पास आकर उन सज्जन से मुखातिब हुई-‘‘भाईसाहब माँल जाते हैं क्या’’?
‘‘क्यों’’?
‘‘वहाँ भी मोलभाव करते है’’?
‘‘मैं माँल-वाँल नहीं जाता’’। वे उखड़ गए।
‘‘बड़ी दुकानों, राशन की दुकानों या बाकी चीजों पर पैसे कम कराते हैं’’।
उनका चेहरा थोड़ा लाल हो उठा था-‘‘देखिए मैडम! जो वाज़िब कीमत होती है...उसे देने में हर्ज नहीं है। पर...ये लोग औने-पौने दाम लगाते हैं...सब्ज़ी जैसी चीज इतनी महँगी’’...
उनकी सोच पर पहले तो हँसी आने को हुई...पर फिर गम्भीर चेहरे से उनसे पूछा’’ आप कहाँ कार्य करते हैं, सर’’?
‘‘ज्वैलर हूँ। सब्ज़ी वगैरा मैं नहीं लाता...नौकर ही लाता हैं वो तो इधर से गुजर रहा था, टमाटर अच्छे लगे तो लेने लगा। कल ही नौकर बता रहा था टमाटर दस रूपए में ढाई किलो’’
ज्वैलर सुन चैंक गई...
‘‘सर!आपकी दुकान पर जब लोग गहने खरीदने आते होंगे, आप वाज़िब दाम ही बताते होंगे?
‘‘बिलकुल,हमारा रेट तो सरकार तय करती है।’’
‘‘और मेकिंगचार्ज सर? वो भी सरकार तय करती है’’?
‘‘नहीं,...अब...वो तो कारीगरी के ऊपर है, जैसा काम वैसा मेकिंगचार्ज’’।
‘‘सही है सर, जैसा काम वैसा मेकिंगचार्ज...इसका भी काम देखिए सर इसका सलीका देखिए.. इसकी सब्ज़ियों को देखकर आप खरीदने के लिए लालायित हुए..तो..तो..सर इसका यह मेकिंगचार्ज है टमाटर पर दो रूपए ज्यादा इसका मेकिंगचार्ज मान लीजिए’’।
उनका चेहरा उतर गया तो मैं थोड़े सांत्वना के स्वर में बोली-‘‘ फिर..फिर इससे इसका घर
चलता है, सर! आपके लिए दो रूपए.. कोई बड़ी बात नहीं..लेकिन इन बच्चों की थाली में सूखी रोटी के साथ..टमाटर की चटनी भी आ जाए शायद’’...
उनके चेहरे की बढ़ती झेंप को देख मैं आगे बढ़ गई। पर मन नहीं माना और पलट कर देखा
मैं सुखद आश्चर्य से भर उठी, सब्ज़ी वाली मुस्कराते हुए उनके थैले में टमाटर डाल रही थी।
इला सिंह
’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’
(7839040416)ilasingh1967@gmail.com
एम.ए.(इतिहास),बी.एड.
कहानी संग्रह ‘‘मुझे पंख दे दो’’ नोशन प्रेस के उपक्रम प्रतिबिंब से प्रकाशित । कथादेश , परीकथा,अक्षरपर्व,कथाक्रम,विभोम स्वर,अन्विति,संस्पर्श ,त्रिवेणी,सेतु (पिट्सबर्ग से प्रकाशित), आर्य कल्प,किस्सा 32 में कहानियाँ और किस्सा 33 में आलेख प्रकाशित। लघुकथा,काम में लघुकथा। के.बी.एस. प्रकाशन से प्रकाशित साँझा संग्रह में कहानी प्रकाशित ।
इला सिंह
’’’’’’’’’’’’’’’’’’
104Ghanshyam Palace Near Indian Oil Petrol Pump Munshi Pulia Chauraha Sector-16,Indira Nagar Lucknow
579 दिन पहले 10-May-2024 3:58 PM
बटवारा,(मौलिक रचना)
आओ भईया खेत खाली, व्यापार सीजन ऑफ है,
अपना तुम हिस्सा बंटा लो,जो हमारे पास है।
माता-पिता ने संजोया, आपका अधिकार है,
जो भी हिस्से में मिलें, सबको वही स्वीकार है।
घर-खेत बांटो और गृहस्थी, बैंक का भी देखना,
व्यापार और व्यवहार बांटो, चल अचल का लेखना।
घर का मुखिया बड़ा भाई, आज वह मजबूर है,
न चाहते भी वह करे, दुनिया का यह दस्तूर है।
बेईमान कहलाता वही, खेती बिजनेस जो करें,
लाभ के संग हानि होती, जो न कोई चित धरें।
सिर्फ भौतिक साधनों से, सुख नहीं मिल पाएगा,
अपनो के बिना सूना सफर, रह रह के मन पछताएगा।
‘परदेशी’कहता हिस्सा बांटो, दिल नहीं दल बांटना,
वस्तु का एवरेज लगा लो, बेकाम कर ना काटना।।
रचयिताः-
सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’
कवि/लेखक,पत्रकार (हिन्दुस्तान)
राष्ट्रीय प्रवक्ताः- सनातन धर्म प्रचार महासभा
ब्लाक अध्यक्ष अहिरोरीः-हरदोई पत्रकार एसोसिएशन
579 दिन पहले 10-May-2024 4:03 PM
मौसमी बीमारियां, घरेलू उपचार
शीत ऋतु जाने को है तथा ग्रीष्म ऋतु आ रही है इस बीच के काल को संधिकाल कहते हैं। इस संधिकाल में मनुष्यों में ऋतु परिवर्तन के कारण शरीर में सामान्य बीमारियां देखने को मिलती हैं, यदि इस समय सावधानी न बरती जाए तो शरीर में अनेकानेक रोग उत्पन्न होने में देर नहीं लगती है।
इस काल में छोटी-छोटी सावधानियां रखी जायें तो बेहतर होगा। प्रायः इस काल में जुक़ाम, बुख़ार, बदनदर्द, ख़ाँसी, आदि सामान्य बीमारियां होती है इनके उपचार हेतु निम्न उपायों को अपनाना चाहिए-
1. इस अवधि में गरम कपड़ों का त्याग एकाएक नहीं करना चाहिए। धीरे-धीरे गरम कपड़ो का त्याग करना चाहिए।
2. अधिक ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए। ज्यों-ज्यों गर्मी का एहसास हो धीरे-धीरे ठंडे पानी का सेवन करना चाहिए।
3. नहाते समय भी ठंडे पानी से परहेज करना चाहिए जब ग्रीष्म ऋतु विधिवत आरम्भ हो जाये तो शीतल जल से स्नान आदि करने का विधान है। यदि कुछ समस्या उत्पन्न हो ही जाय तो इन नुस्खो का सेवन करना चाहिए।
(क)अज़वाइन का पानी पीने से सिरदर्द की समस्या में राहत मिलती है।
(ख)चाय में अदरक, तुलसी की पत्ती, काली मिर्च का सेवन करने से जुक़ाम, ख़ाँसी, बदन दर्द में राहत मिलती है।
(ग) अज़वाइन को गर्म पानी में पकाकर भाप लेने से सर्दी,ख़ाँसी,जुक़ाम में राहत मिलती है ।
(घ) यदि भूख कम लग रही हो तो अदरक उबालकर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पर्याप्त भूख लगेगी।
साथ ही मौसमी फलों का सेवन भी करें जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगें।
डॉ० अरूण कुमार शर्मा
परिचय
डॉ० अरूण कुमार शर्मा लगभग 34 वर्ष की सेवा के बाद अपर निदेशक, आयुर्वेद सेवाओं के पद से सेवा निवृत्त हुए, बाल्यावस्था से ही हिन्दी साहित्य में रूचि रही। इनके प्रेरणा स्त्रोत स्व० श्री महेश चन्द्र ‘सरल’ जी रहे, जो कि ‘हरदोई समाचार’ साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक थे, डॉ० अरूण कुमार शर्मा वर्ष 1972-74 तक ‘‘तरूण-मित्र’’ पत्र के संपादक मंडल में रहे, उपरोक्त पत्रों में श्री शर्मा की कविताएं एवं लेख छपते रहे। ‘नंदन’ बाल पत्रिका में भी पुरस्कृत कहानी छपी। ‘‘झील का दर्द’’ नामक कहानी को राजस्थान में पुरस्कृत किया गया।
579 दिन पहले 10-May-2024 4:06 PM
आदमी मशीन हो गया
अब मुझे यकीन हो गया,
आदमी मशीन हो गया।
दौड़ा ही जा रहा था, अंधी सी दौड़ में,
जब होश आया, देखा अपने थे दौड़ में ।
अपना पराया देखा,अपना मिला नहीं,
ओ जिन्दगी के मालिक,तुझसे गिला नहीं।
झूठे थे उसके वादे, ना अच्छे थे इरादे,
दिन रात खटते-खटते, ईर्ष्या में जलते जलते।
कर्म से मलीन हो गया,
आदमी मशीन हो गया।
संसार में जो आया है,जाना उसे पड़ेगा,
डोली पे जो चढ़ा है,अर्थी पे भी चढ़ेगा।
वो काल से बचा न,बाँधे था काल पाटी,
माटी से दूर भागे,मिल जायेगा वो माटी।
झूठै है उसका लेना, झूठै है उसका देना,
झूठै है उसका भोजन, झूठै लगे चबेना।
झूठ का मुनीम हो गया, आदमी मशीन हो गया।।
राजकुमार दीक्षित
परिचय
नाम-राजकुमार दीक्षित
पिता-श्री रामशरण दीक्षित
पता-पो0मवई खुर्द,माल,लखनऊ
शिक्षा-सिविल इंजीनियर
जन्म-02/10/1972
रूचि-काव्य सृजन
प्रकाशित पुस्तक-समय का यथार्थ(अमेजॉन पर उपलब्ध है)
Deepa Sharma
579 दिन पहले 10-May-2024 4:09 PM
धर्म
धर्म का मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। धर्म मानव मात्र का सबसे संवेदनशील नियंत्रण कर्ता है, जो उसकी जीवन पद्धति, रहन-सहन एवं प्रत्येक गतिविधि पर अपना प्रभाव छोड़ता है। किसी भी धर्म विशेष की अपनी विशिष्टियां हो सकती हैं, परंतु सभी में समान रूप से एक तत्व अवश्य पाया जाता है, जो मानव मात्र का भौतिक गतिविधियों के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक पक्ष पर भी विचार करने हेतु बाध्य करे। प्रेम और सदभाव, सामाज़िक परिवारिक एवं व्यत्तिगत संस्कारो को धर्मानुरूप विकसित करे। धर्म ही वह अंकुश है जो मानव को आध्यात्मिक एवं संस्कारिक सोच के साथ गैर मानवीय एवं असामाजिक गतिविधियों से स्वतः विमुख होने की प्रेरणा देता है। हमारे आराध्य एवं धर्म गुरुओं के उपदेश निरंतर धर्मविशेष के अनुयायियों को मानवीय स्वाभावगत दोषों यथा- लोभ,लालच,राग,द्वेष,असहिष्णुता, क्रोध,अहंकार से इतर उच्चतम मानव मूल्यों को स्थापित करने में सहायक होते हैं। क्या हम दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते हुए,मानवीय गुणों को आत्मसात करते हुए अपने परस्पर सदभावनापूर्ण आचरण को प्रतिष्ठित करेगें?
धर्मों की मूल भावना में ऐसा ही है,फिर भी यदि धार्मिक आधार पर परस्पर विद्धेष या द्धंद का भयावह इतिहास भी है, ऐसा ही वर्तमान में भी है, तो क्या हम यह सोच लें कि धर्म स्त्रोत से प्रवाहित ज्ञान या प्रेरणा दोषपूर्ण है? नहीं ऐसा तो नहीं है! शायद यह धर्म को सच्चे अर्थों में न समझ पाने का परिणाम हो सकता है या तत्कालीन शासन व्यवस्था की स्वार्थी या विस्तारवादी सोच हो सकती है, अन्यथा क्या कारण है कि एक ही प्रकार के धर्मावलम्बियों के मध्य भी संघर्ष स्थिति देखने में आती है। हमें सोचना होगा कि हम अपनी धर्मिक, सामाजिक एवं वंशानुगत पहचान को स्थापित रखते हुए भी अन्य धार्मिक व्यक्तियों व समूहों से सौंह्यर्दपूर्ण सम्बंध बनाये रखे। एक दूसरे की रीतियों-नीतियों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए प्रत्येक धर्म के सुस्पष्ट मानवीय पक्षों को आत्मसात करें। शायद आज के परिप्रेक्ष्य में यह ज्यादा आवश्यक भी है। हमें भारत में ऐसा धर्मनिरपेक्ष परिवेश सौभाग्य से प्राप्त हुआ है जिसमें हमें इन नातों को सर्वोपरि रखते हुए अपने आचरण को सुपरिभाषित एवं व्यवस्थित रखना चाहिये।
दीपा शर्मा
Deepa Sharma
579 दिन पहले 10-May-2024 4:11 PM
जय माता दी-माँ की रसोई
नवरात्रि के शुभ दिनों में जब देवी माँ का आगमन हमारे घर पर होता है तब सब कुछ कितना पवित्र सा लगने लगता है। हम में से कई लोग दो दिन का व्रत करते हैं। कितने ही भक्त पूरे नौ दिन का उपवास करते हैं,क्योंकि भोजन हमारे शरीर की प्राथमिकता है, अतः इन दिनों में भी हम कुछ न कुछ तो खाते ही हैं। उपवास हम जिस श्रद्धा से रखते हैं जरूरी है कि हमारा भोजन भी उतना ही सात्विक और स्वास्थवर्धक हो। आइये बनाते हैं कुछ स्वात्विक और स्वास्थ्य से भरपूर व्यंजन ।
खिचड़ी- चटनी-
सामग्री- सामग्री-
लगभग दो घंटे भीगा हुआ एक कप साबुदाना, पुदीना,
आधा कप भुनी और कुटी हुई मूंगफली, हरी मिर्च 2 चम्मच,
एक टमाटर महीन कटा हुआ, जीरा 1/2 चम्मच,
एक चम्मच देशी घी, दही 1 कटोरी,
चुटकी भर जीरा, विधि:-
चार पत्ती कढ़ीपत्ता, सभी सामग्री को मिक्सी में डाल कर पीस लें
दो हरी मिर्च बारीक कटी हुई, इसमें थोड़ी सी चीनी भी डाल सकते हैं अब
थोड़ी सी बारीक कटी हुई हरी धनिया, खिचड़ी के साथ आपकी चटनी भी तैयार है।
सेंधा नमक स्वाद अनुसार,
विधिः-
गैस ऑन करके एक नॉनस्टिक कढ़ाही उस पर रख दें। कढ़ाही में घी गर्म करिए। गर्म घी में जीरा, हरी मिर्च और कढ़ीपत्ता का तड़का डाल दें। जब तड़का चटक जाए तब टमाटर डालकर उसे गलने तक पकायें, टमाटर पकते ही उसमें भीगा हुआ साबूदाना पानी से छानकर डाल दें फिर धीमी आँच में पकायें। साबूदाने को बराबर चलाते रहें ताकि वह कढ़ाई की तली में चिपकने न पाये।
जब साबूदाने में चमक आने लगे तब कुटी हुई मूंगफली मिलाकर थोड़ी देर और पकायें। आप देखेंगे कि खिली-खिली साबूदाने की खिचड़ी तैयार है। एक सुंदर से बाऊल में इसे निकालें और ऊपर से हरी धनिया से उसे सजायें और हाँ! स्वाद लेने से पहले तस्वीर जरूर ले लें,कहीं आप आज के आँनलाइन दौर में पीछे न रह जाए।
. दीपा शर्मा
परिचय
नाम-दीपा शर्मा
पिता-स्व० अखिलेश चन्द्र आग्रिहोत्री
जन्म तिथि-15/11/1966
निवासी- 1 ए, लक्ष्मीपुरवा,हरदोई
शिक्षा-परा स्नातक,बी०एड०संगीत प्रभाकर (गायन)
विशेष- स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से शिक्षा, संगीत शिक्षा एवं साहित्य क्षेत्र में योगदान
पद- मंत्री,श्री दीप ज्योति जन कल्याण सेवा समिति